परछाई का खेल (Parchai ka Khel)

Read Time: 3 minutes

परछाई का खेल (Parchai ka Khel) Short Horror Story in Hindi: इस कहानी में एक 16 साल का लड़का शॉर्टकट लेने के लिए श्मशान वाले रास्ते से गुजरता है, जहाँ उसे अपने सबसे बड़े डर का सामना करना पड़ता है। अंधेरे और सन्नाटे के बीच वह एक ऐसी चीज़ से मिलता है, जो उसके विश्वास और हिम्मत की कड़ी परीक्षा लेती है।

16 साल का रोहन पढ़ाई के बाद हर दिन ट्यूशन से देर रात घर लौटता था। मगर उस रात कुछ अलग था। शहर की बिजली गुल थी, और हवा में अजीब-सी ठंडक भरी थी। रोहन ने घड़ी देखी—9:15। जल्दी घर पहुँचना ज़रूरी था, वरना माँ परेशान हो जातीं।

उसने सोचा, “क्यों न श्मशान वाले रास्ते से शॉर्टकट लिया जाए?”

श्मशान का रास्ता हमेशा वीरान और सन्नाटे से भरा होता था। रोहन को याद था कि उसके दोस्तों ने कहा था, “वहाँ रात में कुछ दिखता है, जो इंसान जैसा है, मगर वो इंसान नहीं होता।” लेकिन रोहन इन बातों पर यकीन नहीं करता था।

अंधेरे में उसने तेज़ कदम बढ़ाए। ठंडी हवा से पत्ते सरसराने लगे। उसने अपने पीछे हल्की आवाज़ सुनी—“ठक… ठक… ठक…”

रोहन के कदम ठिठक गए। उसने धीरे से पीछे मुड़कर देखा—कोई नहीं।
“शायद हवा होगी,” उसने खुद को समझाया और फिर आगे बढ़ा।

“ठक… ठक… ठक…”

अब आवाज़ तेज़ हो रही थी। उसने एक बार फिर मुड़कर देखा और उसका दिल काँप गया।

वह वहाँ खुद को खड़ा देख रहा था— बिलकुल उसके जैसा चेहरा, वही कपड़े, मगर आँखें गहरी काली। जैसे खाली गड्ढे हों। वह अजीब-सी मुस्कान के साथ रोहन को घूर रहा था।

रोहन के गले से आवाज़ नहीं निकली। वह चुपचाप पलटा और जितनी तेज़ से हो सके भागने लगा। लेकिन वह ‘छलावा’ भी उसके पीछे दौड़ने लगा। उसके कदमों की आवाज़ रोहन के कानों में गूँज रही थी।

रोहन सड़क पर गिर पड़ा। उसने काँपते हुए ऊपर देखा। छलावा उसके सामने खड़ा था। उसकी मुस्कान और गहरी हो गई।

“तू डर रहा है?” छलावा की आवाज़ गूँजी। उसकी आवाज़ कहीं गहराई से आ रही थी, जैसे ज़मीन के अंदर से।
“तू कौन है?” रोहन ने हिम्मत जुटाकर पूछा।

छलावा झुककर उसके चेहरे के करीब आया। उसकी साँसें बर्फ-सी ठंडी थीं।
“मैं तेरा ही अंश हूँ—तेरा डर। जहाँ अंधेरा है, वहाँ मैं हूँ। और आज तूने मुझे यहाँ आने का रास्ता दिया है।”

रोहन का दिमाग सुन्न हो गया। उसने फिर भागने की कोशिश की, मगर छलावा की परछाई ने उसे घेर लिया।

अचानक, रोहन की नज़र पास के पेड़ पर टंगे एक टूटे हुए घण्टे पर पड़ी। वह जानता था कि उसके दादाजी कहते थे, “श्मशान के रास्ते पर जो मिले, उससे नज़रें मत चुराना, वरना वो तेरा पीछा करता रहेगा।”

रोहन ने अपनी हिम्मत बटोरी और छलावा की आँखों में सीधे देखा। उसकी आवाज़ काँपते हुए मगर सख्त थी।
“तू कुछ नहीं कर सकता! मैं तुझसे नहीं डरता।”

छलावा की मुस्कान हल्की पड़ने लगी। उसकी परछाई जैसे धुंधली हो रही थी।
“झूठ मत बोल… मैं तेरा डर हूँ।” छलावा की आवाज़ अब टूटने लगी।

“नहीं। तू सिर्फ मेरे मन का वहम है। तुझे खत्म करना मेरे हाथ में है।”

रोहन ने ज़ोर से चिल्लाया, मानो अपनी सारी हिम्मत उस आवाज़ में डाल दी हो।

छलावा की परछाई चीख के साथ बिखर गई। वहाँ अब सिर्फ रोहन और सन्नाटा था।

वह धीमे कदमों से घर पहुँचा। उसके पैर काँप रहे थे, मगर उसकी आँखों में एक नई चमक थी।
उस रात के बाद रोहन ने समझ लिया कि श्मशान में असली भूत नहीं होते—हमारे डर ही हमें डराते हैं।

लेकिन जब वह अगली सुबह उठकर शीशे के सामने खड़ा हुआ, तो उसे एक पल के लिए लगा कि उसकी परछाई मुस्कुरा रही है।

So I hope Guys आपको यह Horror Story अच्छी लगी होगी।

पढ़ने के लिए धन्यवाद।


दोस्तों, मैं आशा करता हूँ कि आपको “परछाई का खेल (Parchai ka Khel) Short Horror Story In Hindi” शीर्षक वाली यह Real Horror Story पसंद आई होगी। ऐसी और भी Real Ghost Stories In Hindi में सुनने के लिये, हमारे ब्लॉग www.HorrorStoryHindi.com पर बने रहे। यदि आप YouTube पर Ghost Stories सुनना पसंद करते है तो मेरे YouTube ChannelCreepy Content” को सब्सक्राइब कर ले।

धन्यवाद!

Leave a Comment